जीवन मंत्र डेस्क. आज का दौर योग्यता का है। अगर योग्य हैं और प्रशिक्षित नहीं हैं, तो भी संकट है। आपका सक्षम होना अलग बात है, विधिवत शिक्षित होना अलग। कई लोग होते हैं जो अपने को हर चीज के योग्य मानते हैं, लेकिन जब बात ट्रेनिंग की आती है, तो वे उससे बचना चाहते हैं। अगर आप अपनी योग्यता पर अतिविश्वास के कारण किसी शिक्षा को लेने से मना कर देते हैं, तो ये अकेले आपका नहीं,आपके संस्थान का भी नुकसान होता है। हम जिस अनुशानस में काम करते हैं, वहां के नियमों और परंपराओं के अनुसार हमें वहां के लिए आवश्यक कुशलता का प्रशिक्षण लेना चाहिए। इससे आप कई समस्याओं से बच सकते हैं।
जब आप किसी भी अनुशासन में अपने लिए कुछ प्रशिक्षण लेते हैं तो उससे भविष्य में हो सकने वाली कुछ परेशानियों को आप खुद ही दूर कर देते हैं। जैसे, पहली - आप विधिवत उस चीज के जानकार माने जाते हैं, क्योंकि आपको प्रशिक्षण के बाद कोई प्रमाण पत्र भी मिलता है। दूसरा, आपकी योग्यता के लिए लोगों की नजर में कीमत बढ़ जाती है। तीसरा, आप ऐसी कई बारीकियों को समझने में सक्षम हो जाते हैं, जो पहले से आपको नहीं पता होती हैं। चौथी, ये आपको बायोडाटा में एक असेट की तरह जोड़ी जा सकती है। इसलिए कभी भी कुछ सीखने में पीछे नहीं रहना चाहिए, चाहे, आप उस चीज के बारे में काफी कुछ जानते ही हों।
महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण जो संपूर्ण 16 कलाओं के अवतार हैं, जिनके लिए कोई भी काम सिर्फ सोचने मात्र से हो सकता था, उन्होंने भी वो सभी कर्म किए जो एक आम आदमी को करने चाहिए। उनके जन्म के साथ ही उनके सर्वशक्तिमान होने की घोषणा कर दी गई थी। लेकिन भगवान ये जानते थे कि उन्हें संदेश क्या देना है। वे हमेशा कर्म करते रहे और कर्म की ही शिक्षा दी। श्रीकृष्ण सर्वज्ञानी थे, फिर भी सांदीपनि ऋषि से 64 कलाओं का ज्ञान लिया। भगवान अकेले ही महाभारत युद्ध को एक दिन में ही जीत सकते थे, लेकिन उन्होंने सिर्फ पांडवों का मार्गदर्शन किया। श्रीकृष्ण ने संदेश दिया कि परमात्मा सिर्फ राह दिखा सकता है, हर आदमी को अपना कर्म खुद ही करना पड़ेगा।
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