जीवन मंत्र डेस्क. सिख समुदाय के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को पटना, मेंं विक्रम संवत 1723 को हुआ था। इस साल यह तिथि 2 जनवरी को आ रही है। गुरु गोबिंद सिंह की याद में ही श्री हरिमंदिरजी पटना साहिब तख्त का निर्माण हुआ था।
- सिख इतिहास में पटना साहिब का विशेष महत्व है। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म यहीं 5 जनवरी, 1666 को हुआ था और उनका संपूर्ण बचपन भी यहीं गुजरा था। यही नहीं सिखों के तीन गुरुओं के चरण इस धरती पर पड़े हैं। इस कारण देश व दुनिया के सिख संप्रदाय के लिए पटना साहिब आस्था, श्रद्धा का बड़ा और पवित्र केंद्र व तीर्थस्थान हमेशा से है।
सिक्खों को संगठित किया
इनका मूल नाम गोविंद राय था। गोविंद सिंह को सैन्य जीवन के प्रति लगाव अपने दादा गुरु हरगोविंद सिंह से मिला था और वह बहुभाषाविद थे, जिन्हें फ़ारसी अरबी, संस्कृत और अपनी मातृभाषा पंजाबी का ज्ञान था। उन्होंने सिक्ख क़ानून को सूत्रबद्ध किया, काव्य रचना की और सिक्ख ग्रंथ दशम ग्रंथ (दसवां खंड) लिखकर प्रसिद्धि पाई। उन्होंने देश, धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सिक्खों को संगठित किया।
यहां बीते जीवन के शुरुआती साल
आनंदपुर जाने से पहले गुरु गोबिंद सिंह के जीवन के शुरुआती साल यहीं बीते थे। यह गुरुद्वारा सिखों के पाँच पवित्र तख्त में से एक है। भारत और पाकिस्तान में कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे की तरह, इस गुरुद्वारा को महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाया गया था।
1837 में हुआ पुनर्निर्माण
- महाराजा रणजीत सिंह ने इसका पुनर्निर्माण 1837-39 के बीच कराया था। यहां आज भी गुरु गोबिंद सिंह की वह छोटी कृपाण है, जो बचपन में वे धारण करते थे। यहां आने वाले श्रद्धालु उस लोहे की छोटी चक्र को, जिसे गुरु बचपन में अपने केशों में धारण करते थे तथा छोटा बघनख खंजर, जो कमर-कसा में धारण करते थे, के दर्शन करना नहीं भूलते।
- गुरु तेग बहादुर जी महाराज जिस चंदन की लकड़ी के खड़ाऊं पहना करते थे, उसे भी यहां रखा गया है, जो श्रद्धालुओं की श्रद्धा से जुड़ा है। गुरुद्वारे की चौथी मंजिल में पुरातन हस्तलिपि और पत्थर के छाप की पुरानी बड़ी गुरु ग्रंथ साहिब की प्रति को सुरक्षित रखा गया है, जिस पर गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने तीर की नोक से केसर के साथ मूल मंत्र लिखा था।
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