जीवन मंत्र डेस्क. चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम के कपाट गुरुवार, 30 अप्रैल को सुबह 4.30 बजे दर्शनार्थियों के खोले जाएंगे। बदरी नारायण मंदिर जिसे बद्रीनाथ भी कहा जाता है। ये तीर्थ उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे नीलकंठ पर्वत पर स्थित है। भगवान विष्णु को समर्पित ये मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा चारों धाम में से एक के रूप में स्थापित किया गया था। बद्रीनाथ मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप। बद्रीनाथ के पास ही गंगौत्री और यमनौत्री धाम भी हैं। ये दोनों धाम शनिवार, 26 अप्रैल को खोले जाएंगे।
30 अप्रैल को है गंगा सप्तमी
इस साल 30 अप्रैल को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी है। इस तिथि पर गंगा सप्तमी मनाई जाती है। मान्यता है कि गंगा सप्तमी पर ही देवी गंगा पृथ्वी पर आई थीं। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और गुरु पुष्य नक्षत्र भी रहेगा। ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार गुरु पुष्य नक्षत्र का महत्व अक्षय तृतीया के समान ही है। इस योग में शुरू किए गए पूजा-पाठ और अन्य कार्यों में सफलता मिलने के योग बढ़ सकते हैं। इससे पहले 28 अप्रैल को आदिगुरु शंकराचार्य की जयंती है। इस साल सोमवार, 26 अक्टूबर यानी विजयदशमी पर मंदिर के कपाट बंद होने की तारीख घोषित की जाएगी।
इस मंदिर का नाम बद्रीनाथ धाम क्यों पड़ा?
मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि प्राचीन समय में भगवान विष्णु ने इसी क्षेत्र में तपस्या की थी। उस समय महालक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर भगवान विष्णु को छाया दी थी। वृक्ष के रूप में लक्ष्मीजी ने श्रीहरि की बर्फ और अन्य मौसमी बाधाओं से रक्षा की थी। लक्ष्मीजी के इस सर्मपण से भगवान प्रसन्न हुए। विष्णुजी ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था।
मंदिर में विराजित है विष्णुजी की ध्यान मग्न मूर्ति
बद्रीनाथ धाम में विष्णुजी की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। विष्णुजी की मूर्ति ध्यान मग्न मुद्रा में है। यहां कुबेर, लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां भी हैं। इसे धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है।
यहां केरल राज्य का पुजारी करता है पूजा
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा निर्धारित की गई व्यवस्था के अनुसार बद्रीनाथ मंदिर का मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है। मंदिर हर साल अप्रैल-मई से अक्टूबर-नवंबर तक दर्शनों के लिए खुला रहता है।
मंदिर में भगवान के पांच स्वरूपों की होती है पूजा
बद्रीनाथ धाम में भगवान के पांच स्वरूपों की पूजा की जाती है। विष्णुजी के इन पंच स्वरूपों को पंच बद्री कहा जाता है। बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार स्वरूपों के मंदिर भी यहीं हैं। श्री विशाल बद्री पंच स्वरूपों में से मुख्य हैं।
नर-नारायण ने यहां की थी तपस्या
इस क्षेत्र में प्राचीन काल में नर के साथ ही नारायण ने बद्री नामक वन में तपस्या की थी। महाभारत काल में नर-नारायण श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए थे। जिन्हें विशाल बद्री के नाम से जाना जाता है। यहां श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्घ बद्री, श्री आदि बद्री इन सभी रूपों में भगवान बद्रीनाथ यहां निवास करते हैं।
बद्रीनाथ धाम से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
जब गंगा देवी पृथ्वी पर अवतरित हुईं तो पृथ्वी में उनका प्रबल वेग सहन करने की क्षमता नहीं थी। गंगा की धारा बारह जल मार्गों में बंट गई थीं। उसमें से एक है अलकनंदा का उद्गम स्थल है। यही जगह भगवान विष्णु का निवास स्थान बना और बद्रीनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मंदिर जुड़ी एक और मान्यता प्रचलित है कि पुराने समय में इस क्षेत्र में जंगली बेरों के वृक्षों काफी अधिक मात्रा में थे। इस वजह से इसे बद्री वन भी कहा जाता था।
इस क्षेत्र से जुड़ी एक और मान्यता है कि यहां किसी गुफा में वेदव्यास ने महाभारत लिखी थी और पांडवों के स्वर्ग जाने से पहले यहीं उनका अंतिम पड़ाव भी था, वे यहीं रूके भी थे।
बद्रीनाथ धाम कैसे पहुंच सकते हैं
बद्रीनाथ के सबसे का करीबी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ये स्टेशन बद्रीनाथ से करीब 297 किमी दूर स्थित है। ऋषिकेश भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। बद्रीनाथ के लिए सबसे नजदीक स्थित जोली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून में है। ये एयरपोर्ट यहां से करीब 314 किमी दूर स्थित है। ऋषिकेश और देहरादून से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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