भोपाल. आज चैत्र नवरात्र की महाष्टमी तिथि है। माता की आराधना चरम पर है। त्रिपुरा के प्रसिद्ध शक्तिपीठ त्रिपुरसुंदरी मंदिर के पास ही दुनिया का पहला ऐसा मंदिर बन रहा है, जिसमें सारे 51 शक्तिपीठों की प्रतिकृति होगी। इसके लिए बड़े स्तर पर तैयारी शुरू हो गई है। त्रिपुरा पर्यटन विभाग ने इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर से लगभग 3 किमी दूरी पर उदयपुर-मौजा रोड पर स्थिति फुलकुमारी गांव में लगभग 14.2 एकड़ भूमि आवंटित की गई है। मंदिर निर्माण के लिए तय बजट लगभग 44 करोड़ रुपए का है। त्रिपुरा पर्यटन विभाग के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण स्वदेश दर्शन योजना के तहत किया जा रहा है।
देवी पुराण के मुताबिक 108 शक्तिपीठ पूरी दुनिया में हैं, इनमें से 51 शक्तिपीठों को ग्रंथों में मान्यता दी गई है। ये 51 शक्तिपीठ अविभाज्य आर्यावर्त का अंग थे लेकिन अब विभाजन के बाद भारत में कुल 38 शक्तिपीठ हैं, नेपाल में 3, बांग्लादेश में 5, पाकिस्तान में 2 और श्रीलंका-तिब्बत में एक-एक शक्तिपीठ है। भारत में इस समय एक भी ऐसा मंदिर नहीं है, जहां सारे 51 शक्तिपीठों के दर्शन हो सकें। लगभग 8 महीने की प्लानिंग के बाद इसके लिए भूमि आवंटित करके 44 करोड़ के बजट के आवंटन की सिफारिश 15वें फाइनेंस कमिशन को भेज दी गई है। त्रिपुरा पर्यटन विभाग का अनुमान है कि इस मंदिर के निर्माण के बाद यहां के पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि श्रद्धालुओं को एक ही जगह पर सारे 51 शक्तिपीठों के दर्शन करने का मौका मिल सकेगा। भारत में अभी पं. बंगाल की एक ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा 11 शक्तिपीठ हैं। इसके अलावा किसी भी राज्य में 2-3 से ज्यादा शक्तिपीठ नहीं हैं।
मंदिर के डिजाइन पर तेजी से काम किया जा रहा है। इसके लिए दक्षिण भारत के जाने माने आर्किटेक्ट्स की मदद ली जा रही है। मंदिर को भव्य रूप देने के लिए सभी 51 शक्तिपीठों की मूल आकृतियों पर रिसर्च की जा रही है, ताकि हू-ब-हू उनके जैसे मंदिर यहां बना सके। प्रतिमाओं की आकृतियों पर भी काम चल रहा है।
- क्या है त्रिपुरासुंदरी शक्तिपीठ का महत्व
दक्षिणी त्रिपुरा में उदयपुर के पास स्थित राधा किशोर गांव में स्थित इस मंदिर को तंत्र पीठ के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि यहां देवी सती का बायां पैर (दक्षिण पाद) गिरा था। त्रिपुरसुंदरी को दस महाविद्याओं में एक माना जाता है। ये तंत्र की देवी हैं। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि ये 15वीं शताब्दी में बना था। त्रिपुरा के राजा धन्यमाणिक ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। राजा को स्वप्न में देवी ने दर्शन देकर पहाड़ी पर मौजूद प्रतिमा के बारे में बताया था। इस मंदिर को कूर्भपीठ भी कहा जाता है। इसका निर्माण कछुए की पीठ की आकृति में किया गया है। इस मंदिर में देवी को त्रिपुर सुंदरी और भगवान शिव को त्रिपुरेश कहा जाता है। यहां की प्रतिमा काले ग्रेनाइट पत्थर पर बनी हुई है। नवरात्र के दौरान यहां बड़ी संख्या में तांत्रिक और तंत्र साधक पहुंचते हैं।
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