जीवन मंत्र डेस्क. नवरात्रि में सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। ये देवी दुर्गा के क्रोध से प्रकट हुआ स्वरूप है। इसलिए रोग, महामारी और हर तरह की परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए देवी के इस स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी कालरात्रि की पूजा 31 मार्च, सोमवार यानी आज की जाएगी। देवी कालरात्रि का स्वरूप डरावना है। देवी के इसी स्वरूप की पूजा करने से दुश्मनों पर भी जीत मिलती है।
देवी कालरात्रि का स्वरूप
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र गोल हैं। इनकी नाक से अग्रि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गधा है।
पूजा विधि
- चौकी यानी बाजोट पर माता कालरात्रि की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
- चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें।
- कालिका माता के रूप में भी इनकी पूजा की जा सकती है।
- उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका यानी 16 देवियां, सप्त घृत मातृका यानी सात सिंदूर की बिंदी लगाकर स्थापना भी करें।
- इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता कालरात्रि सहित समस्त स्थापित देवताओं की पूजा करें।
- पूजा की सामग्रियों मेंवस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, फुलों का हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा क रूप में कुछ पैसे भी हो सकते हैं।
- इसके बाद आरती और पुष्पांजलि भी करें। फिर प्रसाद बांटकर पूजा पूरी करें।
कालरात्रि पूजा मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
कालरात्रि पूजा का महत्व
देवी कालरात्रि की उत्पत्ति मां दुर्गा के क्रोध से हुई है। ये स्वरूप तामसिक शक्तियों का नाश करने वाला है। इसलिए देवी कालरात्रि की पूजा करने से महामारी और हर तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है। देवी की पूजा से दुश्मनों पर जीत मिलती है। मां कालिका को भी देवी कालरात्रि का स्वरूप मानकर पूजा की जा सकती है।
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