सभी देवी-देवताओं की पूजा की शुरुआत में स्वस्तिक बनाने की परंपरा है। ये शुभ चिह्न प्रथम पूज्य गणेशजी का प्रतीक है। मान्यता है कि स्वस्तिक बनाने से पूजन कर्म में सफलता मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और पूजा-पाठ बिना बाधा के पूरे होते हैं। स्वस्तिक नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करता है और सकारात्मकता को बढ़ाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए स्वस्तिक से जुड़ी कुछ खास बातें, जिनका ध्यान हमेशा रखना चाहिए...
स्वस्तिक हमेशा सुंदर बनाएं
घर हो या मंदिर, जहां भी स्वस्तिक बनाना हो, वहां एकदम स्पष्ट और सुंदर स्वस्तिक बनाना चाहिए। अस्पष्ट और टेढ़ा स्वस्तिक बनाने से बचें। पूजा करते समय टेढ़े स्वस्तिक पर नजर जाती है तो एकाग्रता टूट सकती है।
उल्टा स्वस्तिक न बनाएं
काफी लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदिरों में उल्टे स्वस्तिक बनाते हैं। उल्टा स्वस्तिक मंदिर में बना सकते हैं, लेकिन घर में नहीं बनाना चाहिए। घर में सीधा स्वस्तिक ही बनाना शुभ माना गया है।
कुमकुम से बनाएं स्वस्तिक
दैनिक पूजन कर्म में और अन्य सामान्य पूजा-पाठ में कुमकुम से स्वस्तिक बनाना चाहिए। अगर वैवाहिक जीवन से संबंधित परेशानियों को दूर करने के लिए कोई पूजा कर रहे हैं तो हल्दी से स्वस्तिक बनाना चाहिए।
स्वस्तिक से वास्तु दोष होते हैं खत्म
घर के मुख्य द्वार पर शुभ चिह्न बनाने की परंपरा है। अगर द्वार पर स्वस्तिक बनाया जाता है तो वास्तु के कई दोष दूर हो सकते हैं। द्वार पर शुभ चिह्न के प्रभाव से घर में सकारात्मकता प्रवेश करती है और नकारात्मकता दूर रहती है।
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