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श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद; सुख-दुख तो सर्दी और गर्मी की तरह आते-जाते रहते हैं, इसीलिए इन्हें सहन करना सीखना चाहिए

महाभारत में अर्जुन ने युद्ध से पहले ही शस्त्र रख दिए थे और श्रीकृष्ण से कहा था कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता। कौरव पक्ष में भी मेरे कुटुम्ब के ही लोग हैं, मैं उन पर प्रहार नहीं कर सकता। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। गीता की बातें आज भी हमारी कई परेशानियों के दूर कर सकती हैं और जीवन में शांति ला सकती है। गीता के दूसरे अध्याय के 14वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि-

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।

आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।

इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने सुख-दुख को सर्दी और गर्मी की तरह बताया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि सुख-दुख का आना-जाना सर्दी-गर्मी के आने-जाने के जैसा है। इसीलिए इन्हें सहन करना सीखना चाहिए। जिसने गलत इच्छाओं और लालच को त्याग दिया है, सिर्फ उसे शांति मिल सकती है। इस सृष्टि में कोई भी इच्छाओं से मुक्त नहीं हो सकता, लेकिन बुरी इच्छाओं को छोड़ जरूर सकते हैं।

इस नीति का सरल अर्थ यह है कि हमारे जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। इनके विषय में परेशान नहीं होना चाहिए। अगर दुख है तो उसे सहन करना सीखना चाहिए। क्योंकि आज दुख है तो कल सुख भी आएगा। ये क्रम यूं ही चलता रहता है।

हमारी जो भी इच्छाएं गलत हैं, उन्हें जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए। दूसरों की संपत्ति को देखकर मन में लालच नहीं आना चाहिए। लालच और गलत इच्छाएं व्यक्ति का मन अशांत कर देती हैं। इनसे बचने पर ही जीवन में शांति आ सकती है। सुख हो या दुख हमें समभाव रहकर धर्म के अनुसार आगे बढ़ते रहना चाहिए।



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Sri Krishna and Arjuna; Lord krishna and Arjun in mahabharata, Geeta Saar, life management tips from gita saar



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