बच्चों को समझाने के लिए उनके दोस्त बनकर देंखें, अपनी बात करने के तरीके में प्यार घोलकर आप भी जीत सकते हैं उनका दिल
बच्चों को अनुशासित कैसे किया जाए, शायद सभी अभिभावक इस अजब दुविधा से दो-चार होते होंगे। सवाल कई हैं बच्चों को बाहरी माहौल और टीवी-इंटरनेट जैसे माध्यमों के दुष्प्रभावों से बचाना है, किंतु उन्हें इस सबसे पूरी तरह दूर भी नहीं रखा जा सकता।
बच्चे किससे मिल रहे हैं, दोस्ती कर रहे हैं, अभिभावकों के लिए हर समय निगरानी करते रहना मुमकिन नहीं है।
बच्चे सही दिशा में जाएं इसका एकमात्र तरीक़ा है कि उनमें सकारात्मक अनुशासन और अच्छे संस्कार डाले जाएं। समस्या फिर सामने खड़ी हो जाती है - तरीक़ा कैसा हो? डांट-डपट और सज़ा से उनके मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
डांट की वजह से बच्चे शुरू-शुरू में बात तो मान जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद इससे उनके मन में खटास पैदा होने लगती है और वे माता-पिता से कटने लगते हैं।
उनके मन में यह सोच पैदा हो जाती है कि बड़े उनकी बात और ज़रूरतें नहीं समझेंगे और उन्हें फिर से चुप करा दिया जाएगा।
इसी से शुरू होता है बच्चों का बातें छुपाना। ऐसा न हो इसके लिए व्यवहार और शब्दों में बदलाव ज़रूरी हैं। जानिए कुछ प्रभावी तरीक़े।
शब्दों को थोड़ा बदलें
किसी को भी नियंत्रण में रहना पसंद नहीं होता, बच्चों को भी नहीं। ज़्यादातर अभिभावक बच्चे को हमेशा ‘क्या नहीं करना है’ बताते हुए देखे जाते हैं। जैसे कि ‘सोफे पर नहीं कूदना है’, ‘बाहर मत खेलो’, ‘रात 9 बजे के बाद कोई टीवी नहीं’।
जब ऐसा किया जाता है तो बच्चे अधिक प्रतिरोध दिखाते हैं। अभिभावक यही बातें दूसरे ढंग से भी कह सकते हैं। ‘बेटा सोफा बैठने के लिए है’, ‘अभी बाहर बहुत गर्मी/बारिश है, हम बाद में बाहर जाएंगे’।
अपने बोलने के तरीक़े में बदलाव करें, और इसका सीधा असर बच्चों की मानसिक स्थिति पर देखें। इससे वे आपकी बात सुनेंगे भी और मानेंगे भी।
लहजे में प्यार घोलें
जब आप प्यार से अपनी बात कहते हैं तो आपकी बात आसानी से पहुंचती है। चिल्लाने या ऊंची आवाज़ में बात करने से बच्चा उस वक़्त डरकर मान तो जाता है, लेकिन लंबे समय में इसका असर उल्टा होने लगता है।
माता-पिता होने के नाते आपको यह समझना होगा कि जब आप ख़ुद ग़ुस्से में होते हैं तो आप किसी को सकारात्मक सीख नहीं दे सकते हैं। इसलिए शांत होकर और प्यार से बैठाकर उसे समझाएं।
भावनाओं को समझें
व्यक्ति को सहजता से सुना जाना बहुत आवश्यक होता है। आप ख़ुद सोचिए, जब आप परेशान हों और आपके आसपास कोई न हो जो आपकी बात सुन सके तो कैसा महसूस होगा?
ऊपर से आपको उदास या चिड़चिड़े होने के लिए बार-बार टोका भी जाए? यही ग़लती हम बच्चों के साथ करते हैं। हम उनकी बात सुने बिना ही उन्हें शरारती, बात न मानने वाला, बुरा बच्चा, आदि कहने लगते हैं।
कुछ समय के लिए बच्चों के पास बैठें और उनकी बात सुनें। जब उन्हें महसूस होता है कि उनकी बात को सुना जा रहा है, तो वे आपसे जुड़ाव महसूस करते हैं।
बच्चों के साथ कनेक्शन होना सकारात्मक पैरेंटिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि जो बच्चे माता-पिता के सामने अपनी भावनाएं सहजता से व्यक्त कर पाते हैं, वे बड़े होने पर अकेलापन महसूस नहीं करते। साथ ही, वे दूसरों की भावनाओं को भी समझ पाते हैं।
दोस्त की भूमिका निभाएं
अगर सकारात्मक अनुशासन की इन तकनीकों पर अमल किया जाए तो निश्चित रूप से परिणाम पुरानी डांट-फटकार की अनुशासन विधियों से कहीं बेहतर मिलेंगे।
हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा उनसे हर बात साझा कर सके, लेकिन वे ख़ुद एक दोस्त की भूमिका निभाने में कामयाब नहीं हो पाते।
अभिभावक के लिए ज़रूरी है कि वे बच्चे की इच्छाओं और जिज्ञासाओं को समझें और जानें कि वह किस नज़रिए से दुनिया को देख रहा है।
उसे प्रोत्साहित करें कि वह अपने मन की बातों को आपके साथ साझा करे और आप भी खुले दिल और दिमाग़ के साथ उन्हें स्वीकार करें और बिना डांट-फटकार के उसको सही रास्ता दिखाएं।
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July 30, 2020 at 11:00AM
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