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भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव का तत्व होने से त्रिमूर्ति के रूप में होती है श्रीराम की पूजा

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्री राम की ये मूर्ति लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियों के साथ त्रिपायर के समुद्र के किनारे अपने आप आ गई थीं। जहां से वक्केल कैमल नामक एक व्यक्ति उन्हें ले आया और उनको त्रिप्रायर, तिरुमूज़िक्कलम, कूडलमाणिक्कम और पैम्मेल नाम के स्थानों पर विधि विधान से प्रतिष्ठित कर दिया गया। कालांतर में वक्केल के वंशज दक्षिण में और आगे की तरफ चले गए और त्रिकपालेश्वर के भक्त बन गए। कहते हैं कि एक ही दिन में इन सभी चार स्थानों पर पूजा करना विशेष रूप से शुभकारी होता है।

मूर्ति का अनोखा स्वरूप
यहां मूर्ति का रूप बहुत ही अलग है जिसमें चतुर्भुजधारी विष्णु को राम बनकर दानव काड़ा पर विजेता के रूप में दिखाया गया है। इस मूर्ति में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के तत्व हैं, अत: इसकी पूजा त्रिमूर्ति के रूप में की जाती है। मंदिर के बाहरी आंगन में भगवान श्री अय्यप्पा का मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर खासतौर से अरट्टूपुझा पूरम उत्सव के लिए प्रसिद्ध है।

मान्यता: भगवान कृष्ण ने की थी पूजा
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में जो मूर्तियां स्थापित हैं उन मूर्तियों की पूजा भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका में करते थे। मलयालम कैलेंडर के अनुसार वृश्चिक महीने की कृष्णपक्ष एकादशी के दिन यहां विशेष पूजा का आयोजन कि या जाता है। इस दिन एक विशेष प्रकार की यात्रा भी आयोजित की जाती है। जिसमें बड़ी संख्या में हाथी शामि ल होते हैं।



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Sree Ram Mandir of South India: Thriprayar Sree Rama Temple, In This Temple Sree Raam being worshiped As Trimurti Like Brhma Vishnu And Shiva



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